बीड़ी पर GST घटाने की मांग, उद्योग ने कहा- खतरे में है अस्तित्व

 









बीड़ी उद्योग और श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने स्वदेशी धूम्रपान बीड़ी पर कर में तत्काल कमी का आह्वान करते हुए कहा है कि उच्च करों ने इस क्षेत्र के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। अखिल भारतीय बीड़ी उद्योग महासंघ द्वारा आयोजित ‘ऑनलाइन’ बैठक में उद्योग के लोगों ने बीड़ी के उत्पादन में लगे श्रमिकों के लिए वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की आवश्यकता पर भी विचार-विमर्श किया।

महासंघ के संयुक्त सचिव अर्जुन खन्ना ने कहा, "बीड़ी उद्योग भारत के दूरदराज क्षेत्रों में राजस्व और रोजगार पैदा करने में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। हालांकि, बीड़ी को अहितकर उत्पाद की श्रेणी में माना जाने के कारण इसपर 28 प्रतिशत जीएसटी दर लागू है, जिससे श्रमिकों, विशेषकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं के जीवन पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।"

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को यह भी समझना चाहिए कि इतनी ऊंची कर दर के कारण भारत के सबसे पुराने स्वदेशी उद्योगों में से एक का सफाया होने का खतरा हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ेगा, जो लाखों लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल देगा।" इसके साथ ही बैठक में जीएसटी को कम करने की बात कही गई।

उद्योग के प्रतिनिधियों ने कहा कि जीएसटी परिषद ने हाथ से बने उत्पादों पर कर की दर को तर्कसंगत करके पांच प्रतिशत कर दिया है। ऐसा ही बीड़ी उद्योग के लिए भी किया जा सकता है। बैठक में कहा गया कि भारत में बीड़ी के उत्पादन से लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। अधिकांश श्रमिक महिलाएं हैं, जो नक्सली क्षेत्रों में रहती हैं, जहां नौकरी के कोई वैकल्पिक अवसर मौजूद नहीं हैं।

स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ अश्विनी महाजन ने कहा, "यही कारण है कि बीड़ी पर कर कम करना महत्वपूर्ण होता जा रहा है अन्यथा उद्योग को सरकार की 'मेक इन इंडिया' पहल के प्रति-उत्पादक होने के जोखिम का सामना करना पड़ेगा।"

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